पवन हारी सिद्धि (LIFE ON WIND DIET)
In pranayam of sidh nath panth , there are certain techniques when expertised gives yogi a sidhi called पवन हारी सिद्धि , in this yogi can live without food for months, years. THIS PRANAYAMS ARE PRACTISE BY THE YOGI TRADITIONALLY IN SOME RARE, LINEAGE OF NATH YOGIS,Here we are giving breif reference of the same
यह सिद्धि योगेश्वर उत्तम प्राणायाम द्वारा करते हैं ! योगेश्वर ऊँची
पहाडियों में या पर्वतीय क्षेत्र में जहाँ शुद्ध हवा प्राप्त हों ऐसी
एकांत जगह चुन कर वहाँ प्राणायाम क्रिया द्वारा पवन को शरीर में भरता है
! योग्य प्राणायाम विधि युक्त अभ्यास करते हुए आसन का समय बड़ा कर आसन
सिद्ध करते हैं तथा मन्त्र (गुरु मन्त्र )या ईष्ट मन्त्र की मात्रा बढ़ाते
हैं ! अपने शरीर के योग्य पात्रता अनुरूप प्रथम दो समय का भोजन लेते हैं
! कुछ समय पश्चात एक समय के भोजन की शरीर को आदत लगाते हैं ! फ़िर कुछ दिन
पश्चात दो समय फल ,दूध तदन्तर एक समय फल या दूध लेते हैं ! फ़िर केवल दो
या बाद में एक समय केवल दूध लेते हैं ! इसके पश्चात केवल जल लेते हैं !
अन्त में शरीर को इन आदतों से कम मात्रा करते हुए अन्त में केवल
प्राणायाम द्वारा पवन का आहार लेते हैं तथा काकी ,खेचरी जैसी मुद्राओं का
अभ्यास करके आहार पूर्ण नियंत्रित करके पवन आहार लेते हैं ! और इस प्रकार
पवन हारी क्रिया से अनेक सिद्धियों को प्राप्त होते हैं ! यह क्रिया सबसे
उत्तम ब श्रेष्ठ मानते हैं ! इससे पाँच तत्त्व के ऊपर विजय प्राप्त कर
पंच तत्त्व वशीभूत करते हैं ! इस साधना का समय काफी लम्बा तथा ज्यादा दिन
लगते हैं ! क्योंकि शरीर की आदतों को कम करना और मन के संस्कार को मिटाना
बहुत कठिन है ! जिसको ज्यादा दिन लगते हैं ! अन्त में योगेश्वर शून्य
समाधि जड़त्व ध्यान तथा समाधिस्थ अवस्था प्राप्त कर अमृत पान करते हैं !
योगी दीर्घायुशी होते हैं ! जल वंशी जल पर चलना ! पवनवंशी हवा में उड़ना
,अपने स्वरूप को अति सूक्ष्म तथा अति विशाल बनाना ,ब्रह्मांड विचरण करना
,सिद्ध महात्माओं से प्रत्यक्ष दर्शन तथा वार्तालाप इत्यादि सिद्ध या
साधना प्रगति क्रमानुसार मिलती है ! अति उत्कृष्ट साधना योगेश्वर को
इक्कीस शून्य लांघकर ज्योतिस्वरूप की प्राप्ति करवाती है ! इस प्रकार की
साधना आदिनाथ तथा गुरु गोरखनाथ जी ने की है
In pranayam of sidh nath panth , there are certain techniques when expertised gives yogi a sidhi called पवन हारी सिद्धि , in this yogi can live without food for months, years. THIS PRANAYAMS ARE PRACTISE BY THE YOGI TRADITIONALLY IN SOME RARE, LINEAGE OF NATH YOGIS,Here we are giving breif reference of the same
यह सिद्धि योगेश्वर उत्तम प्राणायाम द्वारा करते हैं ! योगेश्वर ऊँची
पहाडियों में या पर्वतीय क्षेत्र में जहाँ शुद्ध हवा प्राप्त हों ऐसी
एकांत जगह चुन कर वहाँ प्राणायाम क्रिया द्वारा पवन को शरीर में भरता है
! योग्य प्राणायाम विधि युक्त अभ्यास करते हुए आसन का समय बड़ा कर आसन
सिद्ध करते हैं तथा मन्त्र (गुरु मन्त्र )या ईष्ट मन्त्र की मात्रा बढ़ाते
हैं ! अपने शरीर के योग्य पात्रता अनुरूप प्रथम दो समय का भोजन लेते हैं
! कुछ समय पश्चात एक समय के भोजन की शरीर को आदत लगाते हैं ! फ़िर कुछ दिन
पश्चात दो समय फल ,दूध तदन्तर एक समय फल या दूध लेते हैं ! फ़िर केवल दो
या बाद में एक समय केवल दूध लेते हैं ! इसके पश्चात केवल जल लेते हैं !
अन्त में शरीर को इन आदतों से कम मात्रा करते हुए अन्त में केवल
प्राणायाम द्वारा पवन का आहार लेते हैं तथा काकी ,खेचरी जैसी मुद्राओं का
अभ्यास करके आहार पूर्ण नियंत्रित करके पवन आहार लेते हैं ! और इस प्रकार
पवन हारी क्रिया से अनेक सिद्धियों को प्राप्त होते हैं ! यह क्रिया सबसे
उत्तम ब श्रेष्ठ मानते हैं ! इससे पाँच तत्त्व के ऊपर विजय प्राप्त कर
पंच तत्त्व वशीभूत करते हैं ! इस साधना का समय काफी लम्बा तथा ज्यादा दिन
लगते हैं ! क्योंकि शरीर की आदतों को कम करना और मन के संस्कार को मिटाना
बहुत कठिन है ! जिसको ज्यादा दिन लगते हैं ! अन्त में योगेश्वर शून्य
समाधि जड़त्व ध्यान तथा समाधिस्थ अवस्था प्राप्त कर अमृत पान करते हैं !
योगी दीर्घायुशी होते हैं ! जल वंशी जल पर चलना ! पवनवंशी हवा में उड़ना
,अपने स्वरूप को अति सूक्ष्म तथा अति विशाल बनाना ,ब्रह्मांड विचरण करना
,सिद्ध महात्माओं से प्रत्यक्ष दर्शन तथा वार्तालाप इत्यादि सिद्ध या
साधना प्रगति क्रमानुसार मिलती है ! अति उत्कृष्ट साधना योगेश्वर को
इक्कीस शून्य लांघकर ज्योतिस्वरूप की प्राप्ति करवाती है ! इस प्रकार की
साधना आदिनाथ तथा गुरु गोरखनाथ जी ने की है
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